हिसाम सिद्दीकी
नई दिल्ली! उत्तरप्रदेश के वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ गुजिश्ता सात सालों में अपनी जो सियासी हैसियत बना चुके हैं और उनका कद जितना बड़ा हो चुका है उसकी वजह से वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह चाहकर भी उनके साथ वह सियासी सलूक नहीं कर सकते जो इन दोनों ने गुजरात में विजय रूपानी कर्नाटक में बीएस येदुरप्पा, छत्तीसगढ में रमन सिंह, राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के साथ किया है। खबरों के मुताबिक होम मिनिस्टर अमित शाह 2024 के लोक सभा एलक्शन से पहले ही योगी आदित्यनाथ को वजीर-ए-आला के ओहदे से हटाना चाहते हैं। अब उन्हें नितीश हुकूमत ने भी इनडायरेक्ट तरीके से मदद पहुंचा दी है।
अमित शाह और उनके हामियों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि नितीश कुमार ने जात की बुनियाद पर सर्वे और बैकवर्ड तबकों के लिए पैंसठ फीसद रिजर्वेशन की तजवीज असम्बली से पास कराकर बीजेपी के सामने यह मसला खड़ा कर दिया है कि उत्तर प्रदेश जैसी रियासत में किसी बैकवर्ड के हाथ में सरकार की कमान होनी चाहिए। योगी के मामले में बीजेपी कोई जल्दबाजी में फैसला नहीं करना चाहती क्योकि योगी की पूरे देश में हिन्दुत्व की जो तस्वीर बनी है वह मोदी से बड़ी है। दूसरी तरफ जो लोग योगी मुखालिफ हैं उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और दिल्ली एमसीडी के चुनावों से साबित हो चुका है कि हिन्दुत्व के जरिए एलक्शन नहीं जीता जा सकता। इसलिए हिन्दुत्व की तस्वीर वाले लीडर की जरूरत भी नहीं है। यू-ट्यूब चैनल चलाने वाले सीनियर सहाफी दीपक शर्मा का कहना है कि मोदी और अमित शाह इस उलझन में है कि 2024 के लोक सभा एलक्शन से पहले योगी आदित्यनाथ को हटाया जाना चाहिए कि नहीं। उत्तर प्रदेश में योगी अपनी जो हैसियत बना चुके है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर इस वक्त मोदी और अमित शाह ने योगी को हटाया तो प्रदेश में सबसे ज्यादा अस्सी लोक सभा सीटें है उनके नतीजों पर उल्टा असर पड़ सकता है। मोदी और अमित शाह की फिक्र यह भी है कि अगर लोक सभा एलक्शन से पहले योगी के न हटाया गया फिर भी बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई तो बाद में मोदी और अमित शाह इस हैसियत में नहीं रहेंगे कि योगी को हटा सकें।
2024 का लोक सभा एलक्शन मोदी और अमित शाह के लिए करो या मरो जैसी सूरतेहाल का होगा योगी आदित्यनाथ को हटाते हैं तो अस्सी सीटों में नुक्सान का खौफ, नहीं हटाते हैं तो लीडरशिप योगी के हाथ में जाने का खौफ पूरे देश से मिल रही खबरों के मुताबिक 2024 में मोदी की वापसी की कोई उम्मीद नहीं है ऐसे में 2029 के लिए बीजेपी के वजीर-ए-आजम की हैसियत से योगी ही दावेदार होंगे अमित शाह नहीं हो पाएंगे। यह भी मुमकिन है कि 2024 का एलक्शन हारने के बाद मोदी और अमित शाह को भी लाल कृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी की तरह ‘मार्ग दर्शक मण्डल’ में डाल दिया जाए। योगी और अमित शाह के रिश्ते खराब हैं इसका अंदाजा कई बातों से लगता है। मसलन अमित शाह की मर्जी होने के बावजूद योगी ने ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह को वजीर नहीं बनाया। अमित शाह के सबसे नजदीकी बताए जाने वाले बैकवर्ड लीडर केशव मौर्य और वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ के दरम्यान भी तनातनी बढी हुई है। दीपक शर्मा के मुताबिक मौर्य योगी से मिलते नहीं कैबिनेट की कई मीटिगों में शामिल नहीं हुए। इंतेहा यह कि ग्यारह नवम्बर को अयोध्या में योगी बाइस लाख दिए जलाने का रिकार्ड बना रहे थे तो मौर्य उसमें भी शामिल नहीं हुए। केशव मौर्या को अयोध्या ले लाने के लिए एक हेलीकाप्टर खड़ा था, दूसरे डिप्टी चीफ मिनिस्टर ब्रजेश पाठक उन्हें लेने उनके घर भी गए लेकिन मौर्य अयोध्या नहीं गए। विश्व हिन्दू परिषद के साबिक लीडर अशोक सिंघल की उंगली पकड़कर सियासत सीखने वाले केशव मौर्य का इस तरह राम की नगरी मे होने वाले जलसे में शामिल न होना हैरत में डालता है। सीनियर सहाफी अशोक वानखडे़ तो यहां तक कहते हैं कि दिल्ली में तय हुआ था कि मौर्य को होम मिनिस्ट्री दी जाए इसके बावजूद योगी ने उन्हें होम मिनिस्ट्री नहीं दी।
बीजेपी में योगी मुखालिफ लाबी के लोगों का कहना है कि योगी के काम करने का तरीका डिक्टेटरों जैसा है वह अपने वजीरों से कम मिलते हैं। किसी का काम नही करते और ज्यादातर वजीरों पर शक करते रहते हैं कि कहीं वह कोई काम कराकर पैसा तो नहीं कमा रहे हैं। चंद को छोड़कर ज्यादातर मेम्बरान असम्बली से भी नहीं मिलते पार्टी वर्कर तो बहुत दूर की बात है। इस लाबी का कहना है कि जात की बुनियाद पर सर्वे और पिछड़े तबको को पैसठ फीसद रिजर्वेशन देकर नितीश कुमार ने और उनके साथ अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने बैकवर्ड सियासत को आगे बढाकर बीजेपी को परेशानी में डाल दिया है। बैवकर्ड सियासत काम कर गई तो 2024 के लोक सभा और 2027 के असम्बली एलक्शनों में बीजेपी को बड़ा नुक्सान हो सकता है। इसलिए यूपी में किसी बैकवर्ड को चीफ मिनिस्टर बनाया जाना चाहिए। केशव मौर्य भी चीफ मिनिस्टर बनने की जल्दबाजी में इसलिए हैं कि अगर अभी नहीं तो कभी नहीं। 2017 में उनकी कयादत में बीजेपी दो-तिहाई की अक्सरियत से जीत कर आई थी उन्हें वजीर-ए-आला बनने का पूरा यकीन था लेकिन बाद में सीएम की कुर्सी योगी के हाथ में चली गई। वह तभी से नाराज रहते हैं। 2022 में वह असम्बली एलक्शन हारे तो कहा गया कि वह हारे नहीं हरवाए गए हैं। केशव मौर्य के अलावा एक और बैकवर्ड लीडर का नाम अगले चीफ मिनिस्टर की हैसियत से लिया जा रहा है। वह हैं महाराजगंज से छः बार लोक सभा सीट जीतने वाले कुर्मी लीडर पंकज चौधरी। यह तो जनवरी तक तय हो जाएगा कि योगी ही प्रदेश के वजीर-ए-आला रहेगे या कोई दूसरा।
योगी आदित्यनाथ को हटाया जाए और हिन्दुत्ववादियों पर उसका उल्टा असर भी न पड़े इसके लिए अमित शाह कैम्प से यह खबरें भी आ रही हैं कि जनवरी के आखिर तक प्रदेश की डेढ दर्जन अहम लोक सभा सीटों के एलान कर दिए जाएं जिनमें गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ का नाम शामिल हो। योगी ठीक से काम न कर सके दिल्ली से इसकी कोशिशें शुरू से ही जारी हैं। योगी की मर्जी के चीफ सेक्रेटरी नहीं हैं। वह अपनी मर्जी से डीजीपी नहीं बना सकते। दुर्गा शंकर मिश्रा 31 दिसम्बर 2021 को रिटायर हो गए थे उस वक्त वह भारत सरकार में तैनात थे रिटायरमेंट के दिन उन्हें एक साल का एक्सटेंशन देकर यूपी का चीफ सेक्रेटरी बनाया गया था एक साल खत्म हुआ तो उन्हें फिर एक साल का एक्सटेंशन दे दिया गया। आने वाली 31 दिसम्बर को उनका दूसरा टर्म पूरा हो जाएगा खबर है कि उन्हें एक साल का एक्सटेंशन और मिलेगा।