27 फरवरी को देश के 15 स्टेट यानी राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों के लिए वोटिंग होना है. इन सीटों के लिए 15 फरवरी तक नॉमिनेशन किए जा सकते हैं. कैंडिडेट्स 20 फरवरी तक अपने नाम वापस ले सकते हैं. जिन राज्यों में राज्यसभा के चुनाव होने हैं उनमें.
यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल है।
अकॉर्डिंग टू कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया आर्टिकल 80 में राज्यसभा के टोटल मेंबर्स की मैक्सिमम लिमिट 250 तय की गई है. इनमें से 238 मेंबर्स राज्यों और केंद्र शासित यानी (सेंट्रल गवर्नमेंट के कंट्रोल में) प्रदेशों की ओर से चुने जाते हैं
राज्यसभा के 12 सांसदों को राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर नॉमिनेट करते हैं
फिलहाल राज्यसभा में टोटल 245 मेंबर्स है. राज्यसभा के सदस्यों के लिए कम से कम 30 साल कीऐज लिमिट तय की गई है.
वहीं, लोकसभा मेंबर्स के लिए ये सीमा 25 ईयर्स है. राज्यसभा की जिन सीटों पर कार्यकाल यानी की टेन्योर पूरा होता जाता है, चुनाव आयोग उनके लिए नए चुनाव की घोषणा करता है.
अभी तो जापने जाना कि आखिर राज्यसभा का चुनाव लड़ने की ऐज लिमिट कितनी है. आइए अब बात करते हैं कि आखिर राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल यानी वकिंग टेन्योर पीरियड कितना होता है। राज्यसभा के एक तिहाई यानी one-third मेंबर्स का कार्यकाल हर दूसरे साल पूरा होता रहता है और उनकी जगह पर नया इलेक्ट यानी चुनाव होता है. वैसे अगर राज्यसभा का कोई सदस्य रेसिग्नेशन दे दे या किसी की डेथ हो जाए या किसी और रीज़न से किसी मेम्बर को सदन से अयोग्य यानी इनेलीजिबल घोषित कर दिया जाए, तो उसकी जगह पर उप चुनाव मानी उप चुनाव भी होता है. जिस सीट के लिए बीच में चुनाठ होता है, उस पर चुना गया सांसद पूरे छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करता, बल्कि वो उतने ही समय के लिए सांसद बनता है, जितना समय पहले के मेम्बर के कार्यकाल
का बचा होता है।
अब आपको बताते हैं कि आखिर किस फॉर्मुले के तहत राज्यसभा सांसर्दी का चुनाव होता है।
दरअसल, राज्यसभा सांसद को चुनने के लिए एक फॉर्मूला डिसाइड किया गया है. किसी भी सीट से राज्यसभा सांसद बनने के लिए कितने वोटों की जरूरत होती है, यह पहले से तय होता है. इस
फॉर्मूले के तहत राज्यसभा का मेम्बर बनने के लिए एक विधानसभा के टोटल एमएलए के नंबर को 100 से मल्टीप्लाई किया जाता है. इस नंबर को राज्य की कुल राज्यसभा सीटों में एक जोड़कर उससे
डिवाइड किया जाता है. अब जो नया नंबर मिलता है, उसमें एक और जोड़ दिया जाता है. इसके बाद जो नंबर मिलता है, राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम से कम उतने विधायको के वोट जरूरी होते हैं. राज्यसभा चुनाव के लिए कोई गुप्त मतदान यानी कोई सीक्रेट बैलट नहीं होता है. इसमें ईवीएम का इस्तेमान भी नहीं किया जाता है. इस चुनाव में भाग लेने वाले हर कैंडिडेट के नाम के आगे एक से बार तक नंबर्स लिखे होते हैं
इसके वोटर विधायक अपने अकार्डिग उन नंबरों पर निशान लगाते हैं. फिर अपने बैलट मानी बोट को अपनी पार्टी के एजेंट को दिखाकर पेटी में डालते हैं.
ये छोट अपने पार्टी के एजेंट को न दिखाने पर अवैध यानी इलीगल हो जाता है. इसी तरह से अगर वोट किसी दूसरी पार्टी के एजेंट को दिखाया जाए तो भी इलीगल हो जाता है.
तो जैसा कि आपने जाना हमने आपको इस वीडियो में बताया कि आखिर कैसे राज्यसभा के सांसदों का चुनाव होता है.. और जाते जाते आपको ये भी बता दें कि राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है… यानी लोकसभा के चुनाव जिस तरह हर पांच साल में होते हैं या फिर लोकसभा जब भी भंग हो जाए तब होते हैं. लेकिन राज्यसभा के चुनाव पूरे देश में एक साथ कभी नहीं होते.