बसंत की सेज पर नृत्य की उमंग, खजुराहो के साधना स्वरूपी मंच पर कलाकार अर्पित कर रहे नृत्यांजली
*मंच को मंदिर बनाकर नित्यानंद दास ने एक पैर से 30 मिनट तक प्रदर्शित किया नृत्य, ईश्वर का चमत्कार और कलाकार की साधना देख भाव विभोर हुए कलानुरागी*
*”50वां खजुराहो नृत्य समारोह” का चौथा दिवस, उत्सव की तरह इस नृत्य समागम को मना रहा कला समाज*
*खजुराहो।* मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के साझा प्रयासों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन — छतरपुर के सहयोग से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में विश्वविख्यात “50वां खजुराहो नृत्य समारोह” के चौथे दिवस शुक्रवार को कला के विविध आयामों का संगम हुआ। इस अवसर पर निदेशक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी श्री जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
खजुराहो में चल रहा यह नृत्य समागम किसी उत्सव से कम नजर नहीं आ रहा और ऐसी स्मृतियां कलाकारों और कलानुरागियों को प्रदान करता जा रहा है जो मानस पर अमिट रूप में दाखिल होती जा रही हैं। व्यंजन मेला से लेकर मुख्य मंच की नृत्य प्रस्तुतियों तक केवल संस्कृति के बिखरे हुए हैं, मानो बसंत की सेज पर हर कला नृत्य की भांति उमंगित हो रही हो। नृत्य कलाकार भी खजुराहो नृत्य समारोह के साधना स्वरूपी मंच को अपनी नृत्यांजलि अर्पित कर रहे हैं।
चौथे दिन चार नृत्य प्रस्तुतियां प्रदर्शित हुई, जिनमें मोमिता घोष वत्स का ओडिसी, पद्मश्री नलिनी कमलिनी का कथक, मार्गी मधु एवं साथी का कोच्चि—कुड्डी अट्टम त्रयी, डॉ.सुचित्रा हरमलकर का कथक और रोशाली राजकुमारी के समूह का मणिपुरी ने रसिकों को विभोर कर दिया।
शुरुआत मोमिता घोष वत्स के ओडिसी नृत्य से हुई। उन्होंने विष्णु ध्यान से अपने नृत्य की शुरुआत की। राग विभास और एक ताल में निबद्ध नाजिया आलम की संगीत रचना पर मोमिता घोष ने बड़े ही मनोहारी ढंग से अपने नृत्य अभिनय और भंगिमाओं से भगवान विष्णु को साकार किया। अगली पेशकश में उन्होंने समध्वनि की प्रस्तुति दी। यह शुद्ध ओडिसी नृत्य था। इस प्रस्तुति में मोमिता घोष ने अंग क्रियाओं और लय का तालमेल दिखाया। राग गोरख कल्याण और एक ताल में निबद्ध रचना पर उन्होंने विविध लयकारियों का चलन दिखाया। इस प्रस्तुति में भी संगीत संयोजन नाजिया आलम का था जबकि नृत्य संयोजन स्वयं मोमिता घोष का था। उन्होंने नृत्य का समापन जयदेव कृत गीत गोविंद की अष्टपदी “धीर समीरे यमुना तीरे” से किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम को अपने नृत्य भावों से प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा का है जबकि नृत्य संरचना पद्मविभूषण केलुचरण महापात्र ने की। मोमिता के साथ गायन में सुकांत नायक, मर्दल पर प्रशांत महाराना, वायलिन पर गोपीनाथ स्वैन, सितार पर लावण्या अंबाडे और बांसुरी पर सिद्धार्थ दल बेहरा ने साथ दिया।
दूसरी प्रस्तुति में पद्मश्री नलिनी कमलिनी का बेहतरीन कथक नृत्य हुआ। कथक के बनारस घराने की प्रतिनिधि कलाकार नलिनी कमलिनी ने शिव स्तुति से कंदरिया महादेव को नृत्यांजलि अर्पित की। राग मालकौंस के सुरों में पागी और 12 मात्रा में निबद्ध ध्रुपद अंग की रचना “चंद्रमणि ललाट भोला भस्म अंगार” पर दोनों बहनों ने नृत्य की प्रस्तुति से शिव को साकार करने की कोशिश की। इसके पश्चात तीन ताल में कलावती के लहरे पर उन्होंने शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने पैरों की तैयारी के साथ सवाल—जवाब और विविधतापूर्ण लयकारी का प्रदर्शन किया। दोनों बहनों ने होली की ठुमरी पर भाव नृत्य भी किया। पंडित जितेंद्र महाराज द्वारा लिखी गई ठुमरी “मत मारो श्याम पिचकारी” पर उन्होंने बेहतरीन नृत्य प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में नीलाक्षी सक्सेना और शालिनी तिवारी ने भी साथ दिया। समापन में भैरवी में पद संचालन करके उन्होंने द्रुत तीन ताल का काम दिखाया। उनके साथ गायन में नलिनी निगम, तबले पर अकबर लतीफ, वायलिन पर अफजल जहूर, बांसुरी पर शिवम ने साथ दिया। होली का नृत्य संयोजन पंडित जितेंद्र महाराज का था।
मध्यप्रदेश की जानी मानी कथक नृत्यांगना डॉ.सुचित्रा हरमलकर ने भी अपने समूह के साथ खजुराहो के समृद्ध मंच पर खूब रंग भरे। रायगढ़ घराने से ताल्लुक रखने वाली सुचित्रा हरमलकर ने भी अपने नृत्य का आगाज शिव आराधना से किया। तीनताल में दरबारी की बंदिश – “हर हर भूतनाथ पशुपति” पर नृत्य करके उन्होंने शिव के रूपों को सामने रखने की कोशिश की। दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने जटायु मोक्ष की कथा को नृत्य भावों में पिरोकर पेश किया। अगली प्रस्तुति में उन्होंने जयदेव कृत दशावतार पर ओजपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति दी। समापन उन्होंने द्रुत तीनताल में तराने से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ योगिता गड़ीकर, निवेदिता पंड्या, साक्षी सोलंकी, उन्नति जैन, फागुनी जोशी, महक पांडे और श्वेता कुशवाह ने साथ दिया। साज संगत में तबले पर मृणाल नागर, गायन में वैशाली बकोरे, मयंक स्वर्णकार और सितार पर स्मिता वाजपाई ने साथ दिया।
मणिपुरी नृत्य की जानी मानी कलाकार रोशली राजकुमारी के समूह ने भी खजुराहो नृत्य समारोह में अपनी प्रस्तुति दी। इस समूह ने भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास की प्रस्तुति दी। जयदेव की कृतियों पर मणिपुरी नर्तकों की टोली ने बड़े ही श्रंगारिक ढंग से यह प्रस्तुति दी। वास्तव में ये एक तरह की रासलीला थी जिसमें नर्तकों के हाव भाव और चाल बेहद संयमित थे। इस प्रस्तुति में संध्यादेवी, लिंडा लेईसंघथेम विद्याश्वरी देवी, मोनिका राकेश्वरी देवी, सनाथोंबी देवी ने नृत्य में सहयोग किया। जबकि गायन में लांसन चानू ने साथ दिया। संगीत राजकुमार उपेंद्रो सिंह और नंदीकुमार सिंह का था। समूह ने राकेश सिंह के निर्देशन में यह प्रस्तुति दी।
अंतिम पेशकश केरल के प्रसिद्ध कोच्चि कोडिअट्टम नृत्य की रही। केरल के कलाकार मार्गी मधु और उनके साथियों ने इस नृत्य के माध्यम से जटायु मोक्ष की लीला का प्रदर्शन किया। दरअसल यह नृत्य नाटिका थी। इसमें गुरु मार्गी मधु चक्यार ने रावण सौ इंदु ने सीता, श्री हरि चकयार ने जटायु का अभिनय किया। इस प्रस्तुति में सीता हरण से लेकर जटायु मोक्ष तक की लीला का वर्णन था।
*”कलावार्ता”*
50वां खजुराहो नृत्य समारोह के अंतर्गत आयोजित होने वाली कलावार्ता गतिविधि की तीसरी सभा शुक्रवार को सुप्रसिद्ध नृत्यांगना एवं गुरु सुश्री सुचित्रा हरमलकर की नृत्य यात्रा, अनुभव एवं नृत्य विविध आयामों के प्रकाश में सजी। इस अवसर पर उन्होंने अपनी नृत्य यात्रा के शुरुआती दिनों का स्मरण करते हुये बताया कि वे डाॅक्टर बनना चाहती थीं और प्री मेडिकल टेस्ट की तैयारी कर रही थीं। मध्यप्रदेश शासन का चक्रधर नृत्य केन्द्र खुला और उन्होंने अखबार में विज्ञापन निकाले। मेरे पिताजी ने आवेदन कर दिया। इस बात से बेखबर मुझे जब यह बात पिताजी के माध्यम से पता लगी तो मैंने इसका विरोध किया। उन्होंने मुझे किसी तरह समझाकर मना लिया और मैं ऑडिशन देने भोपाल पहुंच गई। उस ऑडिशन को मैंने पास कर लिया और 1981 में चक्रधर नृत्य केन्द्र में एक प्रशिक्षार्ति की भांति मैं कथक की शिक्षा ग्रहण करने लगी। हम वहां प्रतिदिन 6 घंटे प्रशिक्षण प्राप्त करते और इसके बाद शहर में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों, जो किसी भी विधा के हो, देखने-सुनने जाते थे। मैं रायगढ़ घराने के प्रख्यात गुरु पंडित कार्तिक राम की गंडाबंध शिष्या रही और गुरुजी के सानिध्य ने ही कथक के प्रति अथाह प्रेम और साधना का जज्बा कायम किया। उन्होंने आगे बताया कि एक नृत्यकार सम्पूर्णता को तब प्राप्त करता है जब वह सहायक विधाओं को भी आत्मसात करता है। मैंने पंडित ओमप्रकाश चैरसिया के मधुकली वृन्द में गायन भी किया, बव कारंत जी की नाट्य कार्यशालाओं की प्रतिभागी भी रही, तो इस तरह सीखने का सिलसिला अनवरत चलता रहा। मौजूदा समय में मैं देखती हूं कि नई पीढ़ी के कलाकार जल्दबाजी में रहते हैं। जबकि, नृत्य कला में साधना और श्रद्धा की जरूरत होती है। गुरु को न सिर्फ सूचना का तंत्र समझना गलत है, उनके प्रति अटूट श्रद्धा रखना आवश्यक है। गुरु को स्वार्थ पूर्ति का साधन न मानें, क्योंकि कलाओं में कोई शाॅर्टकट नहीं होता है। एक प्रष्न का उत्तर देते हुये सुचित्रा हरमलकर ने कहा कि खजुराहो नृत्य समारोह हर नृत्यांगना का सपना होता है। क्योंकि यह साधना स्थली है और यदि हम यहां अपनी नृत्यांजलि अर्पित कर दें तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
*”लयशाला”*
खजुराहो नृत्य समारोह जैसे आयोजन तब कलाओं के तीर्थ की तरह नजर आने लगते हैं जब फिजिकली चैलेंज्ड ओडिसी नर्तक श्री नित्यानंद दास जैसे कलाकार अपनी साधना से मंच को मंदिर बना देते हैं। जब वे एक पैर पर अपने आराध्य श्रीकृष्ण के छायाचित्र के सामने दंडवत होकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर एक पैर पर अनवरत 30 मिनट तक स्फूर्ति और ऊर्जा के साथ नृत्य करते हैं, तो प्रतीत होता है कि ईश्वर से बड़ी कोई शक्ति नहीं और मनुष्य के हौसले से बढ़कर कुछ नहीं। तब भीग जाती हैं वो सारी आंखें जो ईश्वर के इस चमत्कार की चश्मदीद बनती हैं। 50वां खजुराहो नृत्य समारोह की अनुषांगिक गतिविधि लयशाला की तीसरी सभा में शुक्रवार को एक ऐसा नजारा देखने को मिला जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इस सभा के दूसरे वक्ता भुवनेश्वर के ओडिसी नर्तक श्री नित्यानंद दास का संवाद सह प्रदर्शन हुआ, जिसमें उन्होंने एक पैर पर 30 मिनट का प्रदर्शन प्रिय सखा प्रस्तुत किया। श्री दास ने बताया की कई वर्ष पहले एक दुर्घटना में उन्होंने अपना दाहिना पैर खो दिया। उनका नृत्य छूट गया। वे दूसरे कलाकारों को नृत्य करता देखते तो मन उस ओर भागने लगता। एक दिन वे अपने गुरु श्री बिंदाधर दास के पास पहुंचे और उनसे नृत्य करने की बात कही। गुरु मां के कहने पर गुरुजी एक पैर पर नृत्य सिखाने के राजी हुए। तब अपने शिष्य की खातिर खुद अपना एक पैर बांधकर नृत्य सिखाया। इधर, श्री नित्यानंद दास अपने आराध्य श्री कृष्ण भगवान से रात दिन ये प्रार्थना करते कि उन्हें नृत्य करने की शक्ति दें। तब 2005 में रवीन्द्र मंडप में पहली प्रस्तुति दी। प्रिय सखा प्रदर्शन उनके अपने जीवन की कहानी है जो एक पैर पर नृत्य कर वे प्रदर्शित करते हैं। लयशाला के प्रथम वक्ता श्री पियाल भट्टाचार्य ने कथकली नृत्य की बारीकियों और प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। उनके साथ शिष्य श्री आकाश ने प्रदर्शन में सहयोग किया। उन्होंने बताया कि कथकली महाभारत की लोक कथाओं पर आधारित है। श्री भट्टाचार्य ने कथकली में अंग संचलन पर चर्चा की। उन्होंने बताया की कथकली में पद संचलन काफी मुश्किल होता है।
*”लोकरंजन”*
मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर के सहयोग से खजुराहो नृत्य समारोह परिसर में 20 से 26 फरवरी तक प्रतिदिन शाम 5 बजे से “लोकरंजन” का आयोजन किया गया है, जिसके चौथे दिन महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटा एवं श्री सतपाल वडाली एवं साथी, पंजाब द्वारा सूफी एवं पंजाबी लोकगायन की प्रस्तुति दी गई। शुरुआत सौंगी मुखौटा नृत्य से की गई। सौंगी मुखौटा नृत्य महाराष्ट्र और गुजरात के बीच सीमांत गाँवों में जो नासिक से लगभग 40 कि.मी. दूर फैले हैं, में निवास करने वाले जनजातियों का मूल नृत्य है। यह अत्यन्त आकर्षक रंग-बिरंगी वेशभूषा और हाथ में रंगीन डंडे लेकर प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद श्री सतपाल वडाली एवं साथी, पंजाब द्वारा सूफी और पंजाबी गायन किया गया। उन्होंने तू माने या ना माने दिलदारा…, तुझे देखा तो लगा मुझे ऐसे…, कि जैसे मेरी ईद हो गई…, छाप तिलक सब छीनी…, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी…, मेरे रश्के कमर…, मस्त नजरों से अल्लाह बचाए…, दमा दम मस्त कलंदर… जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी।
*”व्यंजन मेला एवं हुनर”*
खजुराहो नृत्य समारोह न सिर्फ विविध नृत्य शैलियों का उल्लास है, बल्कि यहां समकालीन कलाओं के साथ-साथ व्यंजन और हुनर जैसी गतिविधियां भी कलानुरागियों को प्रफुल्लित कर रही हैं। कार्यक्रम परिसर में प्रवेश के साथ ही लोक और जनजातियों के स्वाद की खुशबू यहां आने वालों के लिए रुचि का विषय बन रहा है। कला और नृत्य के प्रदर्शनों के अवलोकन के पश्चात् वे स्वाद के उस तिलिस्म में डूब रहे हैं जिसमें अपार आत्मशांति है। खजुराहो नृत्य समारोह में व्यंजन मेले का आयोजन किया गया है जहां देशज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। इनमें बुंदेली के अलावा बघेली, मालवा, निमाड़ अंचलों के व्यंजनों के अलावा कोल, गोंड, बैगा इत्यादि जनजातियों के व्यंजन विशेष हैं। मूंग के बरे, कुर्थी दाल, बाजरा-मक्का-ज्वार की रोटियां, भर्ता, मालपुआ, दाल बाफला/बाटी, कोदू पुलाव, मक्का ढोकला, कड़ी और विभिन्न प्रकार की चटनियां खास हैं। साथ ही हस्तकलाओं से परिचित कराने हुनर का आयोजन भी इस समारोह में किया गया है, जिसमें हाथ से निर्मित उत्पादों को विक्रय हेतु प्रदर्शित किया जा रहा है। इनमें जरी-जरदोजी, मेटल उत्पाद, गौ-शिल्प, माटी शिल्प, हस्तनिर्मित आभूषण, बाग/महेश्वरी/चंदेरी की साड़ियां/सूट, मिट्टी के खिलौने इत्यादि भी कलानुरागियों का मन मोह रहे हैं। इस तरह के 140 स्टॉल लगाए गए हैं।
*”चित्रकला शिविर”*
“50वां खजुराहो नृत्य समारोह” के अंतर्गत चित्रकला शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें श्री लक्ष्मीनारायण भावसार—भोपाल, सुश्री वनिता श्रीवास्तव—इंदौर, सुश्री प्रवीणा खरे—इंदौर, श्री हरिकांत दुबे — भोपाल, श्री शंकर शिंदे—इंदौर, श्री देवीलाल वर्मा—जयपुर, सुश्री नीना खरे, सुश्री तृप्ति गुप्ता, श्री बलवंत भदौरिया, श्री मनीष—ग्वालियर, सुश्री सुष्मिता—सांची एवं श्री उमेंद्र वर्मा—ग्वालियर शामिल हुए हैं। इस शिविर में विभिन्न मीडियम में चित्रकला कार्य किया जा रहा है। यहां मूर्त तथा अमूर्त चित्र उकेरे जा रहे हैं। वरिष्ठ चित्रकार श्री लक्ष्मीनारायण भावसार ने बताया कि वे ऑइल कलर में पिछोला, उदयपुर का एक आंखों देखा चित्र उकेर रहे हैं। उनका मानना है कि लैंडस्केप में कलर बोलता है, क्योंकि प्रकृति में रंग हैं, आकार नहीं। श्री हरिकांत दुबे खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर में बनी एक विष्णु—लक्ष्मी की आकृति को कैनवास पर उकेर रहे हैं, जो समकालीन चित्र शैली में है। इस शिविर में सुप्रसिद्ध चित्रकारों से गुण प्राप्त करने व उनसे सीखने बड़ी संख्या में नई पीढ़ी के चित्रकार व कलाप्रेमी पहुंच रहे हैं।
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