एक अलग तरह का मंच है ये, ये मंच हैं नागरिकों का, इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं हैं। समाज को मिलकर कुछ अच्छे काम हाथ में लेने चाहिए और सरकार उन कामों को सहयोग करें, ये भाव मेरे मन में बहुत पहले से प्रबल है क्योंकि हर काम सरकार का नहीं है और हर काम सरकार कर भी नहीं सकती है। समाज की भी अपनी ड्यूटी होती है जिम्मेदारी होती है।
मेरा जन्म हुआ नर्मदा जी के तट पर तो बचपन से मेरे मन भाव था कि, नर्मदा जी का उद्गम ही पेड़ों से है और नर्मदा जी मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है। कालांतर में खूब पेड़ कटे, हमारे गांव में भी दोनों तरफ जंगल होते थे लेकिन आज कुछ नहीं मिलेगा। हम सब जानते हैं कि, ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा है। ये कहा जा रहा है कि, 2050 तक धरती की सतह का तापमान 2 डिग्री सेंटिग्रेट बढ़ जाएगा। ग्लेशियर पिघल जाएंगे, समुद्रों के जल का स्तर बढ़ जाएगा। बारिश अनियमित हो जाएगी। या तो होगी नहीं और होगी तो धूंआधार होकर बाढ़ की स्थिति पैदा करेगी। कई तरह की आशंकाएं दुनिया भर के वैज्ञानिक जता रहें हैं। ग्लोबल वार्मिंग से पूरी दुनिया चिंतित है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी भारत की ओर से दुनिया को कुछ कमेटमेंट किए हैं कि, हम जीरो नेट तक 2070 तक अपने देश को ले जाएंगे। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हम सोचें कि, क्या हम केवल चिंता ही प्रकट करेंगे, क्या हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे।
जब मैं मुख्यमंत्री था तो तीन साल पहले मेरे मन में एक विचार आया कि, पर्यावरण बचाओ, पेड़ लगाओ और तब मन में एक संकल्प जागा कि, पहले खुद पेड़ लगाओ फिर आप किसी और को कहने के अधिकारी हो। 19 फरवरी 2021 को अमरकंटक में नर्मदा जयंती के दिन मैंने पेड़ लगाना शुरू किया। और मन में ये संकल्प लिया कि, रोज एक पेड़ जरूर लगाउंगा। पर्यावरण केवल भाषण से नहीं बदलेगा, हम मिलकर काम करेंगे तो बदलेगा। और तब से लेकर अब तक एक दिन भी नागा नहीं गया, जब मुझे कोविड हो गया तब भी मैंने पेड़ लगाया।