*भोजपुर में महाशिवरात्रि के पावन अवसर “महादेव” महोत्सव के दूसरे दिवस सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित*
*भोपाल।* मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन रायसेन के सहयोग से ऐतिहासिक धरोहर स्थल भोजपुर में महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय “महादेव” महोत्सव के दूसरे दिवस शनिवार को चार सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित की गई। इस अवसर पर जिला पंचायत सीईओ श्रीमती अंजु पवन भदौरिया, एसडीएम रायसेन श्री चंद्रशेखर श्रीवास्तव एवं मंदिर के महंत पवन गिरी ने कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
भोजपुर की दिव्य धरा पर संस्कृति के गुल कुछ इस तरह बिखरे कि कलानुरागियों की आत्मा तक इनकी सुगंध ने दस्तक दी। संस्कृति के इस गुलदस्ते का सबसे पहला गुल था गायन एवं नृत्य, जिसे दिल्ली की प्रतिष्ठित कलाकार सुश्री सुधा रघुरामन के गायन एवं संयोजन में प्रस्तुत किया गया। सर्वप्रथम सुधा रघुरामन का एकल गायन हुआ, जिसमें उन्होंने शिवशक्ति गायन प्रस्तुत किया। प्रस्तुति का समापन शिवोहम गायन से किया। इसके बाद सुश्री सुधा रघुरामन के संयोजन में भोपाल की चार नृत्य गुरुओं सुश्री मंजू मणि हतवलने, सुश्री श्वेता देवेंद्र, सुश्री कविता शाजी नायर एवं सुश्री नीरजा सक्सेना की शिष्याओ ने नृत्य प्रस्तुति दी। लय और सुर—ताल के इस ताने—बाने ने कलानुरागियों को शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के सौंदर्य से रूबरू कराया। इस प्रस्तुति में सबसे पहले राग यमन एवं शिवरंजनी में खण्ड चापू ताल में निबद्ध शिव पंचाक्षर की प्रस्तुति दी गई। इसके बाद राग रेवती और आदि ताल में निबद्ध भो….
शंभो की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। समापन राग हिंदोलम एवं आदि ताल में निबद्ध तिल्लाना की प्रस्तुति से किया गया।
इसके बाद अवसर आया लोकनृत्य का, जिसमें मालवा के लोक संसार के गुलों ने अपनी सुगंध बिखेरी। यह प्रस्तुति वरिष्ठ कलाकार कृष्णा वर्मा एवं साथी, उज्जैन द्वारा प्रस्तुत की गई। इस प्रस्तुति में कलाकारों द्वारा मालवा अंचल में मांगलिक कार्यों एवं तीज—त्योहारों में किया जाने वाला नृत्य मटकी प्रस्तुत किया। ढोल की थाप पर महिला कलाकारों द्वारा दी गई इस प्रस्तुति में कलानुरागियों ने मालवा के सौंदर्य का आत्मीय स्पर्श किया। इस नृत्य को महिलाएं मटक—मटक कर प्रस्तुत करती हैं और इसमें ग्यारह जगहों से महिलाओं के अंग मटकते हैं। इस प्रस्तुति में कलाकारों के पद संचलन ने खूब तालियां बटोरीं।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के इस सिलसिले को आगे बढ़ाया “सती” लीला नाट्य ने, जिसे श्री सुमन साहा, कोलकाता के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। ‘सतीलीला’ नृत्यनाट्य की कथावस्तु
सृष्टि के आरंभिक काल की कथा है जिसमें आदिदेव ब्रह्मा प्रजाविस्तार के लिए कई स्तरों पर प्रयासरत होते हैं। उनके मन में विचार आता है कि जगत के कल्याण के लिए शिव और शक्ति का मिलन परम आवश्यक है। वह अपने अनेक मानसपुत्रों में से एक दक्षराज को प्रेरित करते हैं कि वह सहस्त्रों पुत्रों के स्थान पर एक शक्तिशाली पुत्री पाने के लिए तपस्या करें। पिता की आज्ञा मानकर दक्षराज देवी जगदंबा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगते हैं। इधर ब्रह्मा स्वयं भी देवी जगदंबा का आह्वान करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वह दक्षराज की कन्या के रूप में जन्म लेकर शिव से विवाह करें। सती का जन्म होता है। विवाह की आयु आने पर ब्रह्मा और विष्णु शिव से प्रार्थना करते हैं कि उनके लिए दक्षपुत्री सती योग्यतम कन्या है और वह उनसे विवाह करें। शिव अपने प्रिय ब्रह्मा और विष्णु के निवेदन को अस्वीकार नहीं कर पाते और विवाह की सहमति दे देते हैं। राग और प्रेम से कोसों दूर रहने वाले शिव जैसे ही सती को देखते हैं मोहित हो जाते हैं। वह गंधर्व विवाह का प्रस्ताव रखते हैं परंतु सती अस्वीकार कर देती हैं। वह कहती हैं कि पहले उनके पिता से अनुमति लीजिए तब विधिपूर्वक विवाह कीजिए । शिव मान जाते हैं और ऐसा ही करते हैं । बारात आती है विवाह संपन्न होता है उसके बाद शिव सती को अपने निवास कैलाश पर लाते हैं । कैलाश पहुंचकर सती देखती हैं कि उनकी ससुराल में न घर है न कोई गृहस्थी का सामान । यहां तक कि तुरंत भोजन के लिए भी कुछ नहीं है । तब शिव सती को भोजन कराने के लिए मुनि अगस्त्य के यहां ले जाते हैं । अगस्त्य के यहां दोनों प्रभु श्रीराम की कथा भी सुनते हैं । श्रीराम का गुणगान करते हुए जब शिव सती के साथ लौट रहे होते हैं कि तभी सीता को ढूंढ़ते हुए राम और लक्ष्मण दिखते हैं । राम को देखकर शिव उन्हें प्रणाम करते हैं । यह देखकर सती विस्मय में पड़ जाती हैं । उन्हें राम की अलौकिकता पर संदेह होता है । सती के संदेह पर शिव उन्हें परीक्षा लेने की अनुमति देते हैं । सती राम की परीक्षा लेती हैं और उनका देवत्व देखकर पश्चाताप करती हैं । तब तक शिव लंबी समाधि पर बैठ चुके होते हैं। सती उनकी समाधि के टूटने की प्रतीक्षा में स्वयं भी समाधिस्थ हो जाती हैं।
अंतिम प्रस्तुति ध्वनि ब्रदर्स, भोपाल की भक्ति संगीत की रही। श्री विवेक तिवारी एवं श्री सोमेन राय ने कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना से की। इसके पश्चात प्रसिद्ध भजन शिव कैलाशों के वासी…., हे शुभू बाबा…. की प्रस्तुति दी, गायन पर साथ श्री रंजीत एवं श्री रवि ने दिया। तबले पर ध्वनि ब्रदर्स के प्रमुख श्री उत्कर्ष नारनवरे रहे, श्री प्रमोद लहासे गिटार, श्री अतुल अर्चवाल ने गायन एवं सिंथेसाइजर, श्री देवा शांडिल्य ढोलक, श्री प्रदीप भारती ढोल, श्री राज खतरकर ऑक्टोपैड पर रहे।
*”महादेव” महोत्सव, भोजपुर में आज*
महोत्सव के अंतिम दिन 10 मार्च को सुश्री शीला त्रिपाठी एवं साथी, भोपाल द्वारा लोकगायन, सुश्री अमिता खरे एवं साथी, भोपाल द्वारा महादेव केंद्रित समूह नृत्य एवं सुश्री रक्षा श्रीवास्तव एवं साथी द्वारा भक्ति गायन की प्रस्तुति दी जावेगी।
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