उत्तम संत की कामना किसे नहीं होती, हर दम्पति चाहती है कि उनका एक ऐसा पुत्र हो, जो उनके कुल को आगे बढ़ाए और कुल का नाम रोशन करे। कुछ ऐसे भी हैं, जो बेटे की चाहत में कई कन्याओं को जन्म देते हैं, लेकिन उनके बेटे की चाहत पूरी नहीं होती। आज के युग में माता-पिता की नज़र में बेटे और बेटी में कोई खास अंतर नहीं है, जो काम पुत्र कर सकता है, वही काम बेटी भी कर सकता है।
हां, धर्मशास्त्रों में कुछ श्राद्ध आदि कर्मों का प्रथम अधिकारी पुत्र बनाया गया है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा का श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से श्रेष्ठ पर्व कोई दूसरा नहीं होगा। स्वयं भगवान के जन्मोत्सव के कारण संत की कामना के दर्शन से इस पर्व पर कोई बड़ा और आह्वान एवं अवसर ही नहीं है, ऐसा वह मानते हैं कि कृष्ण भक्त भी शामिल हैं, जिनमें श्रीकृष्ण भगवान की कृपा से संत की प्राप्ति हुई है।
प्राचीन ग्रंथों के संदर्भ में हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति और अन्य सामाजिक दायित्व की पूर्णता के लिए पुत्र होने की अनिवार्यता को बताया गया है, लेकिन आपके पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होने के कारण कई व्यक्ति पुत्र सुख का लाभ प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ।। ऐसे लोगों के लिए भी पुत्र की इच्छा के अनुसार जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है।
यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ कोई भी दम्पति इस दिन उपवास रखता है तो अर्धरात्रि में भगवान श्री कृष्ण के बालरूप ‘लड्डू गोपाल’ का पूजन करें तो ऐसे भक्तों की पुत्र चिंता भगवान गोपाल को शीघ्र दूर कर देते हैं। संतप्राप्ति में गर्भगौरी रुद्राक्ष का भी बहुत महत्व है। यह रुद्राक्ष साधारण रुद्राक्ष नहीं है, बल्कि प्रकृति प्रदत्त ऐसा रुद्राक्ष है, जो एक विशेष प्रकृति का होता है, इस रुद्राक्ष से मनोनुकूल संतान की प्राप्ति निश्चित है। इसलिए सनातन कामना के लिए इस रुद्राक्ष को जन्माष्टमी के दिन धारण करना विशेष फलप्रद होता है।